देश को कॉमनवेल्थ खेलों में कुश्ती का पहला गोल्ड दिलाने वाली महिला पहलवान गीता फोगाट और उनके पिता महावीर फोगाट पर बनी फिल्म ‘दंगल’ ने चारों तरफ वाहवाही लूटी है. इस फिल्म की कहानी ना सिर्फ लोगों को पसंद आई बल्कि इसके जरिए लड़कियों को गोद में ना मारने के संदेश के साथ-साथ महिलाओं को भी कई बातों के लिए प्ररित किया है.वैसे इस फिल्म का एक डॉयलाग हैं “मुझे इन छोरियों से बहुत प्यार है लेकिन मेरा सपना एक छोरा ही पूरा कर सकता हैं. दरअसल पहले भारत के लोगों का मानना था कि पहलवानी सिर्फ औऱ सिर्फ लड़के ही कर सकते है लेकिन ‘गीता फोगाट’ ने लोगो की सोच से हटकर 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया.
वैसे गीता और बबीता पहले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महिला पहलवान है. दंगल फिल्म उन लड़कियों की कहानी है जिन्हें पहले कुश्ती से नफरत होती हैं लेकिन बाद में उन्हें इस खेल का ऐसा जनून चढ़ता हैं कि फिर वो कभी पीछे मुड़कर नही देखती.ये फिल्म इसलिए भी खास है क्योकिं गीता और बबीता हरियाणा की रहने वाली हैं. ये वो राज्य जहां लड़के लड़कियों का लिंगानुपात सबसे ज्यादा खराब है.देखा जाएं तो कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं को लेकर ये राज्य काफी बदनाम रहा है.
इसी के साथ साथ ये उस जिद्दी बाप की भी कहानी हैं जिसे पहले अपनी पत्नी, समाज, देश और यहां तक की खेल सत्ता और अंत मे अपनी बेटी गीता औऱ बबीता के साथ सभी से लड़ाई लड़नी पड़ी.तो वहीं इस फिल्म में एक वक्त ऐसा आता हैं जब बेटे की चाहत में बिल्कुल पागल हुए महावीर (आमिर खान) औरतों के हक के लिए अपनी आवाज बुलंद करते है. इसके अलावा गीता और बबीता को बेमन पहलवानों से पूरी तरह से कुश्ती के प्रति समर्पित खिलाड़ी के रूप में देखना बहुत ही ज्यादा दिलचस्प है. देखा जाएं तो दंगल एक ऐसी फिल्म है जो माता-पिता, बच्चों के पालन-पोषण जैसे मुद्दों पर बहुत ही संभलकर चली है लेकिन खेल से जुड़े मसलों, सफलताओं और असफलताओं पर इसमें काफी बेबाक राय रखी गई है.