फ़िल्में जिन्होंने तोड़ी ‘आदर्श महिला’ की छवि
भारतीय फ़िल्मों में औरत को हमेशा बेचारी, अबला और ग्लैम डॉल बनाकर पेश किया गया है. बहुत कम ही फ़िल्में हैं जिनमें हिरोइन का किरदार हीरो से ज़्यादा या उसके बराबर मज़बूत रहा हो. लेकिन जिस तरह समाज में औरतों को लेकर बदलाव आ रहा है उसी तरह फ़िल्मों में भी ये सुखद बदलाव देखने को मिल रहा है. ऐसी कुछ चुनिंदा फ़िल्मों पर नज़र डालते हैं.
- क्वीन
इस फ़िल्म में रानी बनी कंगना रनौत को उसका मंगेतर शादी के एक दिन पहले शादी से इनकार कर देता है. टूटे दिल के साथ रानी अपने हनीमून पर अकेले विदेश निकल पड़ती है. इस सफ़र में उसे कुछ अंजान लोग मिलते हैं जो उसके दोस्त बनते हैं. वापस लौटने पर रानी का मंगेतर उसे शादी के लिए प्रपोज़ करता है लेकिन रानी इनकार कर देती है. ऐसा कितनी फ़िल्मों में हमने देखा है कि लड़की अपनी मर्ज़ी और अपने स्वाभिमान को अहमियत देती है ? एक बेवफ़ा से शादी करने से बेहतर रानी अकेले रहना पसंद करती है. ये फ़िल्म मिसाल है कि किस तरह एक आम सी, नाज़ुक सी लड़की एक मज़बूत लड़की में तब्दील होती है.
- पीकू
दीपिका पादुकोण ने इस फ़िल्म में टाइटल रोल निभाया था. हमारे समाज में लड़की को एक उम्र के बाद शादी और बच्चों के ताने मिलने शुरू हो जाते हैं. इस फ़िल्म में पीकू एक 30 साल की औरत है जिसकी शादी नहीं हुई है, वो इंडिपेंडेंट है और अपने बूढ़े पिता की अकेले देखभाल करती है. पीकू की लड़कों से भी दोस्ती है और वो कभी कभार डेट पर भी जाती है. उसे अपनी लाइफ़ से कोई शिकायत नहीं है और ना ही उसे अपनी लाइफ़ में पति की कमी महसूस होती है.
- कहानी
विद्या बालन ने इस फ़िल्म में अपने पति की मौत का बदला ले रही है एक विधवा का रोल अदा किया था. अपने पति के क़ातिल की तलाश कर विद्या उसे मार डालती हैं. हमें शायद ही याद आए इससे पहले किस फ़िल्म में हिरोइन इस तरह का रोल निभा रही है वर्ना हमेशा हीरो ही बदला लेने के मिशन पर निकला होता था.
- गुलाब गैंग
इस फ़िल्म में गांव की कुछ औरतें मिलकर अन्याय और भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हैं. गुलाब गैंग मिलकर उन औरतों का सहारा बनता है जो मर्दों या औरतों के ज़ुल्मों का शिकार होती हैं. इस गैंग की औरतें हथियार चलाना बख़ूबी जानती हैं. वो अपनी और दूसरी औरतों की सुरक्षा का बीड़ा ख़ुद ही उठाती हैं. फ़िल्मों में हिरोइन को नाज़ुक और छुई मुई वाले रोल में देखने के आदी हो चुके दर्शकों के लिए ये फ़िल्म एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह थी.
- नाम शबाना
एक आम लड़की के एक बहादुर इंटेलिजेंस ऑफ़िसर बनने की कहानी है नाम शबाना. इस फ़िल्म में शबाना को एक ख़तरनाक आतंकवादी को ख़त्म करने के लिए चुना जाता है और शबाना अपने मिशन में कामयाब भी होती है. इस फ़िल्म से पहले शायद ही किसी फ़िल्म में एक लड़की को किसी ख़तरनाक मिशन के लिए चुना गया हो. शबाना एक मज़बूत और बहादुर लड़की की कहानी है.